भारत रत्न से सम्मानित तीन अनमोल रत्न

February 4 2019

25 जनवरी, 2019 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से वर्ष 2019 में सम्मानित किए जाने हेतु जिन तीन व्यक्तियों के नामों की घोषणा केन्द्र सरकार ने की है, निसन्देह अभूतपूर्व है। देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, समाजसेवी नानाजी देशमुख और गायक व संगीतकार भूपेन हजारिका को वर्ष 2019 के 'भारत रत्न' सम्मान हेतु चयनित किया गया है।

भारतीय वरीयता के क्रम में भारत रत्न द्वारा सम्मानित व्यक्तियों को सातवां स्थान प्राप्त है। अन्य अलंकरणों के समान इस सम्मान को भी नाम के साथ पदवी के रूप में युक्त नहीं किया जा सकता। यह सम्मान उन व्यक्तियों को दिया जाता है, जिन्होंने देश के किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हों।

 

2019 के 'भारत रत्न' से सम्मानित तीन विभूतियों का परिचय

इस वर्ष जिन तीन विभूतियों को 'भारत रत्न' से सम्मानित करने का फैसला किया गया है, उनमें सामाजिक कार्यकर्त्ता नानाजी देशमुख और प्रख्यात संगीतकार भूपेन हजारिका को मरणोपरांत इस सम्मान से सम्मानित किया गया है। भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बारे में सबको ज्ञात ही है।

यहाँ प्रस्तुत है तीनों विभूतियों का संक्षिप्त परिचय -

 

प्रणब मुखर्जी

प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर कस्बे के निकट स्थित मिरारी गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में 11 दिसम्बर, 1935 को हुआ था। करीब पाँच दशकों तक देश की राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी देश के 13वें राष्ट्रपति रहे हैं। हालांकि पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति रह चुके हैं, इसलिए वे इस पद पर आसीन होने वाले 12वें व्यक्ति हैं। प्रणब मुखर्जी ने राजनीति में आने से पूर्व एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल राजनीति में शुरू हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं। उन्होंने 'द कोलि एशन ईयर्सः 1996-2012' पुस्तक भी लिखी है। वर्ष 1984 में जब वे वित्त मंत्री बने थे, तब उन्हें न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रि का 'यूरोमनी' के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मंत्रियों में से एक चुना गया था। उन्हें सन‍् 1997 में 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' का तथा वर्ष 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्म विभूषण' से भी नवाजा गया है। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017 तक रहा।

 

नानाजी देशमखु

'नानाजी देशमुख' के नाम से लोकप्रिय 'नानाजी' का वास्तविक नाम 'चंडिकादास अमृतराव देशमुख' था। महाराष्ट्र के 'हिंगोली' जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे नानाजी का जीवन बचपन में ही अपने माता-पिता को खो देने के पश्चात‍् अभाव और संघर्षों में बीता, इसके बावजूद उनके सुदृढ़ विचारों तथा मजबूत चरित्र का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, परन्तु उन्होंने यह कहकर कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा कार्य करें, मंत्री पद ठुकरा दिया। 1980 में 60 साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर एक आदर्श की स्थापना की। बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया। दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना करके वे समाज सेवा से जुड़े रहे। उन्होंने गरीबी निरोधक व न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाया, जिसके अंतर्गत कृषि , कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा पर विशेष बल दिया। उनके द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था- 'हर हाथ को काम और हर खेत को पानी।' 1999 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और उसी वर्ष उनके समाज सेवा के कार्यों के लिए उन्हें 'पद‍्म विभूषण' से सम्मानित किया गया। उनका निधन 27 फरवरी, 2010 को चित्रकूट में हुआ।

 

भूपेन हजारिका

असम के रहने वाले भूपेन हजारिका , भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे, जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उनके असरदार आवाज में गाए गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। गायक एवं संगीतकार होने के साथ ही एक कवि , फिल्म निर्माता, लेखक और असम की संस्कृति तथा संगीत के अच्छे जानकार थे। उन्हें पारंपरिक असमिया संगीत को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्हें 'पद‍्म विभूषण' (2011), 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार'(1992) तथा 'असोम रत्न' (2009) पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। 5 नवंबर, 2011 को उनका निधन हुआ।

 

'भारत रत्न' का इतिहास

इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी, 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई थी। प्रथम बार यह पुरस्कार वर्ष 1954 में सी. राजगोपालाचारी (स्वतंत्रता सेनानी और भारत के अंतिम गवर्नर जनरल), डॉ. सी.वी. रमण (भौतिक विज्ञान) और डॉ. एस. राधाकृष्णन (दार्शनिक एवं भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति ) को प्रदान किया गया था।

हालांकि पहले ये पुरस्कार उन वि​शिष्ट व्यक्तित्व को प्रदान किया जाता था, जिन्होंने कला, विज्ञान, साहित्य और जनसेवा के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि प्राप्त की हो, परन्तु दिसम्बर 2011 से इसके मापदंडों में 'किसी भी क्षेत्र में मानवीय प्रयास' को सम्मिलित करने के लिए इसे विस्तृत कर दिया गया।

अर्थात‍् 'भारत रत्न' कला, साहित्य, विज्ञान के क्षेत्र में तथा किसी राजनीतिज्ञ, विचारक, वैज्ञानिक, उद्योगपति , लेखक, कलाकार और समाजसेवी को असाधारण सेवा हेतु व उनके द्वारा किए गए उच्च लोक सेवा को मान्यता देने के लिए भारत सरकार की ओर से दिया जाता है।

प्रारंभ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, बाद में यह प्रावधान वर्ष 1955 में इसमें जोड़ा गया। अब तक कुल 48 हस्तियों को (वर्ष 2019 के लिए चयनित व्यक्तित्व को जोड़कर) यह सम्मान दिया गया है, जिनमें से 12 व्यक्तियों को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया गया।

कैसे होता है चयन 'भारत रत्न' देने के लिए

भारत गणराज्य द्वारा प्रदान किया जाने वाला 'सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार' है 'भारत रत्न', जो उन वि​शिष्ट व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है, जिन्होंने अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में उच्चतम कोटि का कार्य किया हो।

भारत के प्रधानमंत्री अपनी संस्तुतियां भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तुत करते हैं, जिनमें से राष्ट्रपति इस पुरस्कार के लिए किसी एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों का चुनाव करते हैं। सम्मानित व्यक्तियों को पीपल के पत्ते की आकृति का एक पदक और एक प्रमाण-पत्र (सनद) प्रदान किए जाते हैं।

 

'भारत रत्न' सम्मान (पदक) का विवरण

मूल रूप में इस सम्मान के पदक का डिजाइन 35 मिमी. गोलाकार स्वर्ण पदक था, जिसमें सामने सूर्य बना था, ऊपर हिन्दी में भारत रत्न लिखा था और नीचे पुष्पहार था और पीछे की तरफ राष्ट्रीय चिन्ह और मोटो बना था। फिर इस पदक के डिजाइन को बदल कर तांबे के बने पीपल के पत्ते पर प्लैटेनिम की बनी सूर्य की छवि बनाई गई, जिसके नीचे चांदी के अक्षरों में देवनागरी लिपि में 'भारत रत्न' लिखा रहता है और यह सफेद फीते के साथ गले में पहना जाता है।

यद्यपि पुरस्कार विजेताओं की किसी भी प्रकार की राशि का वितरण नहीं किया जाता है।

भारत रत्न को मिलने वाली सुविधाएं

भारत रत्न से सम्मानित होने वाली शख्सियतों को जीवन पर्यन्त निम्न प्रकार की सुविधाएं मिलती हैं-

  • जीवन भर के लिए आयकर देने से मुक्ति
  • जीवन भर की मुफ्त यात्रा (एयर इंडिया, भारतीय रेल)
  • VVIP की तरह सम्मानित
  • Z सिक्योरिटी सुरक्षा की सुविधा
  • राज्यों में वि​शिष्ट अति​थि की तरह सम्मानित/ महत्वपूर्ण सरकारी कार्यों में आमंत्रित
  • भारतीय दूतावास से किसी भी देश में किसी भी प्रकार की मदद
  • 'वॉरंट ऑफ प्रिसिडेंस' में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त। 'वारंट ऑफ प्रिसिडेंस' का इस्तेमाल सरकारी कार्यक्रमेां में वरीयता देने के लिए होता है।
  • भारत रत्न विजेताओं को 'प्रोटोकॉल' में राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री, राज्यपाल, पूर्व राष्ट्रपति , उप-प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष , कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता के समक्ष स्थान मिलता है।
  • भारतीय संसद की कैबिनेट मीटिंग में 'ऑथोराइज टू पार्टिशिपेट' की योग्यता भी दी जाती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
  • 'भारत रत्न' देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
  • 2 जनवरी, 1954 से इस सम्मान को देने की शुरुआत तत्का लीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की थी।
  • पहले यह सम्मान केवल जीवित व्यक्तियों को दिया जाता था, 1955 में मरणोपरांत भी सम्मान देने का प्रावधान इसमें जोड़ दिया गया।
  • 2013 में पहली बार इस सम्मान में खिलाड़ियों को भी शामिल करने की शुरुआत की गई और इसी कड़ी में क्रिकेटर सचिन तेन्दुलकर को इस सम्मान के लिए चुना गया।
  • भारत रत्न पाने वालों को भारत सरकार की ओर से केवल एक पदक और प्रमाणपत्र दिया जाता है। इस सम्मान के साथ कोई धनराशि नहीं दी जाती।
  • 1992 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को मरणोपरान्त 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की घोषणा की गई थी। लेकिन उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठाया गया था, इसलिए भारत सरकार ने यह सम्मान वापस ले लिया। भारत रत्न पुरस्कार वापस लिए जाने का यह एकमात्र उदाहरण है।